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नज़्म
फ़ज़्ल-ए-बारी से जो कल शाम हुई चाँद की दीद
आ गई हाथ हक़ीक़त में मसर्रत की कलीद
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है