aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "diid-talab"
रूह से गुज़रता हैदिल तलक पहुँचता है
मुझे विटनेस बॉक्स में तलब किया जा चुका थामक़्तूल के वुरसा
ग़म का आहंग हैइस शाम की तंहाई में
अपनी ताज़ा नज़्म सुना करदाद-तलब नज़रों से देखा
पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात यहाँ शाम ढलेदेर तक फैली रहेगी तिरी शिरकत की महक
दाद-तलब थींउस की आँखें ढूँड रही थीं जाने क्या
इस ने यूँ देखा नहीं दाद-तलब नज़रों सेजैसे इस आस में हो
ऐ जान हमारा भी कहा मान इधर देखहै दीद की हर आन तलब दिल को हमारे
चला आ रहा हूँ समुंदरों के विसाल सेकई लज़्ज़तों का सितम लिए
सर में शौक़ का सौदा देखादेहली को हम ने भी जा देखा
एक शब हल्की सी जुम्बिश मुझे महसूस हुईमैं ये समझा मिरे शानों को हिलाता है कोई
1बिछी हुई है बिसात कब से
तो दिल ताब-ए-नशात-ए-बज़्म-ए-इशरत ला नहीं सकतामैं चाहूँ भी तो ख़्वाब-आवर तराने गा नहीं सकता
यूँ हुआ एक दिनसब्ज़-ओ-शादाब जंगल में सहरा उगा
दिल कुढ़ता हैइतनी इतनी देर तलक
मैं उदास हूँ ज़रा देख तोतू नज़र नज़र से मिला कभी
जिस दिल में उतरोमेरी तलब आवाज़ न देगी
सुब्ह से ले करशाम तलक
में...!बर्फ़ से ढकी चट्टान से फिसल फिसल गया
रगों में नाच रहा है इक आतिशीं ज़हराबतिरी तलाश फ़क़त जिस्म का तक़ाज़ा है
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