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नज़्म
आँख ज़ाहिर की जो है नींद में रहती है मगन
इस के अंदर मगर इक दीदा-ए-बेदार भी है
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
अगर इस मज्लिस-गेती में औरों को रुलाता है
दिल-ए-दर्द-आश्ना-ओ-दीदा-ए-ख़ूँ-बार पैदा कर
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
है जहान-ए-गुज़राँ ख़्वाब का बिल्कुल नक़्शा
दीदा-ए-हज़रत-ए-इंसाँ के लिए धोका सा
सूरज नारायण मेहर
नज़्म
फ़रेब-ए-हुस्न देता दीदा-ए-कोर-ए-तमन्ना को
निगाह-ए-दिल-नशीं बन कर अदा-ए-दिलसिताँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
उफ़ ये शबनम से छलकते हुए फूलों के अयाग़
इस चमन में हैं अभी दीदा-ए-पुर-नम कितने