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नज़्म
गर्दिश-ए-ख़ूँ में रवाँ दिल के धड़कने की सदा
अश्क-ए-ख़ूँ-नाब के अंदर से उबलती आवाज़
हारिस ख़लीक़
नज़्म
अगर इस मज्लिस-गेती में औरों को रुलाता है
दिल-ए-दर्द-आश्ना-ओ-दीदा-ए-ख़ूँ-बार पैदा कर
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
दीदा-ए-पुर-ख़ूँ से कासा तक की मंज़िल का बयाँ
ज़िंदगानी में हज़ारों बार मर जाने की बात
शाज़ तमकनत
नज़्म
बहुत मैं ने भी की हैं दीदा-ए-पुर-ख़ूँ की तफ़्सीरें
मगर ये दामन-ए-तर क्या करूँ गुलशन नहीं बनता
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
छुपाऊँ क्यूँ न दिल में ख़ातिम-ए-गौहर-निगार उस की
यही ले दे के मेरे पास है इक यादगार उस की
अख़्तर शीरानी
नज़्म
हर शजर मीनार-ए-ख़ूँ हर फूल ख़ूनीं-दीदा है
हर नज़र इक तार-ए-ख़ूँ हर अक्स ख़ूँ-बालीदा है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़ून के आँसू भरे थे दीदा-ए-नमनाक में
मुख़्तलिफ़ शक्लें थीं ग़म की चेहरा-ए-ग़मनाक में
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
ख़ूँ रुलाएगा तुझे भी मेरा अफ़्साना-ए-ग़म
हम-क़फ़स पूछ न क्यों दीदा-ए-तर रखते हैं