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नज़्म
आख़िरी हिचकी में दीदार-ए-सनम हो तो कहीं नज़्म बने
उजड़े आँगन के अहाते में तेरी आमद हो
उमैननुज़ ज़हरा सय्यद
नज़्म
ये कस दयार-ए-अदम में मुक़ीम हैं हम तुम
जहाँ पे मुज़्दा-ए-दीदार-ए-हुस्न-ए-यार तो क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम की तीरगी से दूर हूँ
ज़िंदगी के पेच-ओ-ख़म सुलझा रहा हूँ आज-कल
मासूम शर्क़ी
नज़्म
ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ग़रज़ कि आते ही वक़्त-ए-सहर ख़याल-ए-नमाज़
जबीं थी पा-ए-सनम पर ज़बाँ पे ''या-माबूद!''
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये ज़माना कैसा बदल गया न वो वलवले न वो हौसले
किसी वक़्त थे जो सनम-शिकन वो हैं आज वक़्फ़-ए-सनम-गिरी
अमजद नजमी
नज़्म
न ख़ातूनों में रह जाएगी पर्दे की ये पाबंदी
न घूँघट इस तरह से हाजिब-ए-रू-ए-सनम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
तेरी ही जुस्तुजू मुझे तेरा ही इंतिज़ार है
तुझ से बिछड़ के ऐ सनम चैन है न क़रार है