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नज़्म
चमन में लाला दिखाता फिरता है दाग़ अपना कली कली को
ये जानता है कि इस दिखावे से दिल-जलों में शुमार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
होंट हँसते हों दिखावे के तबस्सुम के लिए
दिल ग़म-ए-ज़ीस्त से बोझल रहे आज़ुर्दा रहे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
और कभी तमाम के तमाम अल्फ़ाज़ खो जाते हैं
बनावट और दिखावे उन को निगल जाते हैं