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नज़्म
कभी अंदेशा-ए-फ़र्दा से मुँह डाला गरेबाँ में
कभी दिल से सुना अफ़्साना-ए-फ़ितरत गुलिस्ताँ में
बिसमिल देहलवी
नज़्म
रहा करता है अहल-ए-ग़म को क्या क्या इंतिज़ार इस का
कि देखें वो दिल-ए-नाशाद को कब शाद करते हैं
राम प्रसाद बिस्मिल
नज़्म
दामन-ए-मग़रिब में पोशीदा रुख़-ए-ख़ुर्शीद है
आमद आमद है क़मर की उस का शौक़-ए-दीद है
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
कितना बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर था बाल-गंगा-धर-तिलक
दिल-जलों से बा-ख़बर था बाल-गंगा-धर-तिलक