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नज़्म
सुर्ख़ और सुनहरे कपड़े इशरत की घेरियाँ हैं
महबूब दिलबरों की ज़ुल्फ़ें बिखेरियाँ हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
इक गर्म अँगीठी जलती हो और शम्अ हो रौशन और तिस पर
वो दिलबर, शोख़, परी, चंचल, है धूम मची जिस की घर घर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ये हाथों की लकीरें बाज़ आएँगी कहाँ दिलबर
इन्हें तो बैर है हम से करम-फ़रमा रक़ीबों पर
उज़ैर रहमान
नज़्म
मुझे बहना था हर सूरत किसी भी तौर चलना था
मुदव्वर घाटियों दिलबर ज़मीनों और मैदानों ने
परवीन ताहिर
नज़्म
मिट्टी के सब साक़ी-ओ-दिलबर मिट्टी के सब शीशा-ओ-साग़र
मिट्टी के सब जाम-ओ-सुबू हैं सब पैमाने मिट्टी के