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नज़्म
शाहिद-ए-मज़्मूँ तसद्दुक़ है तिरे अंदाज़ पर
ख़ंदा-ज़न है ग़ुंचा-ए-दिल्ली गुल-ए-शीराज़ पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बढ़ा तस्बीह-ख़्वानी के बहाने अर्श की जानिब
तमन्ना-ए-दिली आख़िर बर आई सई-ए-पैहम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वही ज़मीं, वहीं ज़माँ, वही मकीं, वही मकाँ
मगर सुरूर-ए-यक-दिली, मगर नशात-ए-अंजुमन
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
रुख़्सत ऐ दिल्ली तिरी महफ़िल से अब जाता हूँ मैं
नौहागर जाता हूँ मैं नाला-ब-लब जाता हूँ मैं