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नज़्म
मुझे राज़-ए-दो-आलम दिल का आईना दिखाता है
वही कहता हूँ जो कुछ सामने आँखों के आता है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ुदावंद-ए-दो-आलम से वो ये बेवपार करते हैं
जो रक्खा ही नहीं रोज़ा उसे इफ़्तार करते हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
ख़ल्लाक़-ए-दो-'आलम का किया ज़िक्र-ओ-तसव्वुर
क्या ख़ूब 'इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ हम ने किया है
इनाम थानवी
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
तेरा चेहरा है कि तख़्लीक़-ए-मह-ओ-महर का राज़
तेरी आँखें हैं कि असरार-ए-दो-आलम जैसे
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
मेहर-ए-ताबाँ ने दो-आलम में उजाला कर दिया
आदमी ने आदमी का बोल-बाला कर दिया