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नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये किन निगाहों ने मिरे गले में बाहें डाल दीं
जहान भर के दुख से दर्द से अमाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मैं जब भी ज़ब्ह हुई ज़िंदगी के ख़ंजर से
दुखी है ख़्वाबों में इक दश्त-ए-इज़्तिराब में माँ
अज़रा परवीन
नज़्म
तुम नंद को नैन के तारे हो तुम दीन दुखी के सहारे हो
तुम नंगे पैरों ढाने हो भगतों का मान बढ़ाने को
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
सो मिरे हमदम मिरे दोस्तो मिरे यारो
ज़रा क़रीब आओ आओ बताऊँ राज़ तुम्हें दुखी दिल का