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नज़्म
मगर एक ही रात का ज़ौक़ दरिया की वो लहर निकला
हसन कूज़ा-गर जिस में डूबा तो उभरा नहीं है!
नून मीम राशिद
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
तेज़-तर होती हुई मंज़िल-ब-मंज़िल दम-ब-दम
रफ़्ता रफ़्ता अपना असली रूप दिखलाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इक जुनूँ-अंगेज़ लय में जाने क्या गाते हुए
सर-कशी की तुंद आँधी दम-ब-दम चढ़ती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
चिलमन जो गिराई बदली की मैदान का दिल घबराने लगा
उभरा तो तजल्ली दौड़ गई डूबा तो फ़लक बे-नूर हुआ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
भड़कती जा रही है दम-ब-दम इक आग सी दिल में
ये कैसे जाम हैं साक़ी ये कैसा दौर है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फिर दुहल करने लगे तशहीर-ए-इख़लास-ओ-वफ़ा
कुश्ता-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा का दिल जलाने के लिए