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नज़्म
हम आज़ादी के दीवाने ये दुनिया फ़र्ज़ानों की
इस पापी संसार में बाबा कौन सुने दीवानों की
अनवर साबरी
नज़्म
ये उजली सी ज़मीं नज़रों की हद से और आगे तक
शजर फैले चले जाते हैं अपनी हद से आगे तक
सूफ़िया अनजुम ताज
नज़्म
सियह रातें खनकती धूप शामें कह रहीं मुझ से
मैं जिन आँखों से दुनिया देखता था खो गईं मुझ से
प्रशान्त मिश्रा मन
नज़्म
बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मोहब्बत है
मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो इस दुनिया की औरत है