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नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तोड़ डालीं फ़ितरत-ए-इंसाँ ने ज़ंजीरें तमाम
दूरी-ए-जन्नत से रोती चश्म-ए-आदम कब तलक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कहाँ हैं वो सब जिन से जब थी पल-भर की दूरी भी शाक़
कहीं कोई नासूर नहीं गो हाएल है बरसों का फ़िराक़
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
पर क्या हुआ? वो कहाँ गई? अब कौन ये बातें जानता है
कब इतनी दूरी से कोई शक्लों को पहचानता है
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
मेरे थकते बाज़ू में और चाँद में शायद दूरी अब भी उतनी ही है
चाँद अभी तक दूर है मुझ से