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नज़्म
जब इस अँगारा-ए-ख़ाकी में होता है यक़ीं पैदा
तो कर लेता है ये बाल-ओ-पर-ए-रूह-उल-अमीं पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल के बुझते हुए अँगारे को दहकाते हुए
ज़ुल्फ़-दर-ज़ुल्फ़ बिखर जाएगा फिर रात का रंग
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
आज से मेरे फ़न का मक़्सद ज़ंजीरें पिघलाना है
आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊँगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ज़बाँ को तर्जुमान-ए-ग़म बनाऊँ किस तरह 'कैफ़ी'
मैं बर्ग-ए-गुल से अंगारे उठाऊँ किस तरह 'कैफ़ी'
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
जलाना छोड़ दें दोज़ख़ के अंगारे ये मुमकिन है
रवानी तर्क कर दें बर्क़ के धारे ये मुमकिन है
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
दुनिया की मायूस निगाहें उम्मीदों से भर दो
मुस्तक़बिल की राह से चुन लो सब अंगारे बच्चो