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नज़्म
यतीम-ए-बे-नवा की रह-गुज़र पर अशरफ़ी बन कर
लईम-ए-फ़ाक़ा-कश की जेब-ए-मुम्सिक से गिरा होता
जमील मज़हरी
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
आज से ऐ मज़दूर किसानो मेरे गीत तुम्हारे हैं
फ़ाक़ा-कश इंसानो मेरे जोग-बहाग तुम्हारे हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
क़त्अ होती ही नहीं तारीकी-ए-हिरमाँ से राह
फ़ाक़ा-कश बच्चों के धुँदले आँसुओं पर है निगाह
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अभी तो फ़ाक़ा-कश इंसान से आँखें मिलाना है
अभी झुलसे हुए चेहरों पे अश्क-ए-ख़ूँ बहाना है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आ रहा है फ़ाक़ा-कश मज़दूर के चेहरे पे रंग
खुरदुरे हाथों से अब टकरा रहे हैं जाम-ओ-संग
अख़्तर पयामी
नज़्म
आवारा-गर्दी फ़ाक़ा-कशी फ़िक्र-ए-रोज़गार
ये सब बलाएँ लिपटी हैं आशिक़ के दम के साथ