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नज़्म
अजनबी तुझ से तअ'ल्लुक़ का सिला ख़ूब है ये
तेरी ख़्वाहिश है कि हर रोज़ नई नज़्म लिखूँ तेरे नाम
खुर्शीद अकबर
नज़्म
गूँगी बहरी अंधी मोहब्बत पर इक्तिफ़ा किए हुए हूँ
कि असीर ख़्वाहिश-ओ-फ़रमाइश का हक़ नहीं रखते
साइरा इक़बाल
नज़्म
उसी की गोद में रखते थे सब फ़रमाइशी पर्चे
किसी जादू से पूरा कर रहा है ये समझते थे