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नज़्म
दिगर शाख़-ए-ख़लील अज़ ख़ून-ए-मा नमनाक मी गर्दद
ब-बाज़ार-ए-मोहब्बत नक़्द-ए-मा कामिल अय्यार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हो चुकी है हुक्मराँ जिस नख़्ल पर बाद-ए-ख़िज़ाँ
उस की रग रग में बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ पाता हूँ मैं
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
ऐ गिरफ़्तार-ए-अबु-बकर-ओ-अली हुशियार-बाश
'इश्क़ को फ़रियाद लाज़िम थी सो वो भी हो चुकी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बे-फ़िक्र-ओ-बे-दस्त चलता रहा हूँ
अनोखी ज़मीनों तिलिस्मी जज़ीरों को दरयाफ़्त करता रहा हूँ
शहाब जाफ़री
नज़्म
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ तकमील-ए-तमन्ना की तमन्ना है
इसी आग़ोश में मेराज-ए-फ़र्दा की तमन्ना है