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नज़्म
तू ही मज़लूमों की फ़रियादों का है फ़रियाद-रस
ग़म के शो'लों को बुझा देता है दिल में आ के तू
साक़िब कानपुरी
नज़्म
ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ख़ार-ओ-ख़स के झोंपड़े मिट्टी के बोसीदा मकाँ
जैसे अंधों के इशारे जैसे गूँगों की ज़बाँ
मयकश अकबराबादी
नज़्म
आप फ़रमाते हैं तू ने रात को नाले किए
बंदा-पर्वर 'औज' तू आदी नहीं फ़रियाद का