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नज़्म
ये मो'जिज़ा है तिरे ज़ौक़-ए-ताज़ा-कारी का
कि सर-निगूँ है फ़र-ओ-फ़ाल शहरयारी का
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इक आदमी हैं जिन के ये कुछ ज़र्क़-बर्क़ हैं
रूपे के जिन के पाँव हैं सोने के फ़र्क़ हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तेरी फ़ज़ा दिल-फ़रोज़ मेरी नवा सीना-सोज़
तुझ से दिलों का हुज़ूर मुझ से दिलों की कुशूद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह सीमाब-ए-परेशाँ अंजुम-ए-गर्दूं-फ़रोज़
शोख़ ये चिंगारियाँ ममनून-ए-शब है जिन का सोज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आशोब-ए-जहाँ की देवी से यूँ आँख चुराऊँगा कब तक
जिस फ़र्ज़ को पूरा करना है वो फ़र्ज़ भुलाऊँगा कब तक