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नज़्म
तारे जुगनू हैं कि मोती फूल हैं या सीपियाँ
कहकशाँ है धूल तारों की कि मौज-ए-पुर-ख़रोश-ओ-दुर-फ़शाँ
यूसुफ़ ज़फ़र
नज़्म
ये फ़र्श-ए-ख़ाक था क़ालीन-ए-ज़र-फ़शाँ अपना
ये महर ओ माह ये तारे थे अपने घर के दिए
मख़मूर जालंधरी
नज़्म
जो ग़म सिवा हो तो तू क्या करे है मेरे ख़ुदा
यहाँ तो अश्क फ़शाँ मोमिन और काफ़र है
मोहम्मद ओवैस ख़ाँ
नज़्म
और कोह-ए-आतिश-फ़शाँ के दहाने से गुज़र किया हूँ
और उस पर अभी जब ना-तमामी का एहसास डसता रहा
शहाब जाफ़री
नज़्म
थके-माँदे मुसाफ़िर को सुला देता लब-ए-दरिया
हवा-ए-सर्व बन कर मौजा-ए-‘अम्बर-फ़शाँ हो कर