aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "faya-kun"
अपनी ख़ुदी की ख़ुदा मैं ख़ुद हूँमेरे जहान-ए-मन का हर फ़य-कून
मैं पैदा होते ही उलझन में हूँअगर मैं इश्क़ हूँ तो फ़ना क्यूँ नहीं हो जाती
रात की तीरा फ़ज़ा क्यूँ मुझे घबराती है?रात की तीरा फ़ज़ा में तिरी आँखों की चमक मुझ को डरा सकती नहीं है मैं तो
फ़ोम के बिस्तर पर इक दीवार उठा दी वक़्त नेअजनबी ना-आश्ना ख़ामोश से रहने लगे
रात इक सितारे नेतुम को देर तक देखा
ये फ़ज़ा इतनी तअफ़्फ़ुन क्यूँ हैमैं तो हर जगह ठहरा हुआ ग़लत ख़ून देख रही हूँ
कैसी आबाद है ये तन्हाईकिस क़दर बोलता है सन्नाटा
आसमाँ की तरहना-रसाई की चादर
कौन से बाग़ में जा कर हो आएदिल की हर बात सुना कर हो आए!
कल रात जब अपनी ज़ुल्फ़ें फ़ज़ा में बिखरा चुकी थीऔर थका हुआ आलम
रह-ए-इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँजुनूँ सा कोई रहनुमा चाहता हूँ
सिपाही आज भी कोई नहीं आयाकिसी ने फूल ही भेजे
कौन कहता है हम तुम जुदा हो गएज़िंदगी से अचानक ख़फ़ा हो गए
फ़ज़ा में मुअल्लक़ये शाख़ें हैं
अब समझ में आया है'उम्र राएगाँ कर के
तुम्हारे गले मेंनए ख़्वाब के मोतियों की सुनहरी सी माला
जब मैं तुम से मिलता हूँबअ'द एक मुद्दत के
ज़माना तेज़ धार हैजो चल गया सो पार है
न पूछ मुझ सेकि जंग, लश्कर,
हम को आने लगेगी फ़ज़ा में नज़रकौन से तज्रबे के सहारे मियाँ
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