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नज़्म
जो मुस्लिम है तो जाँ नामूस-ए-मिल्लत पर फ़िदा कर दे
ख़ुदा का फ़र्ज़ और उस के नबी का क़र्ज़ अदा कर दे
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
उसी की सर-बुलंदी से वतन की सर-बुलंदी है
मैं एहसास-ए-वक़ार-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत पेश करता हूँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
दुख़्तरान-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत रक़्स फ़रमाती रहीं
इस नई तहज़ीब में कल्चर इसी का नाम है
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
रवा-दारी, उख़ुव्वत, दोस्ती, ईसार, हमदर्दी
ख़्याल-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, दर्द-ए-क़ौम, अंदेशा-ए-फ़र्दा
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
दिल-ए-मुर्दा को हो वो जज़्बा-ए-बेताब अता
मरज़-ए-पस्ती-ए-मिल्लत का जो दरमाँ कर दे
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
फ़ज़ा-ए-इल्म-ओ-फ़न पर ये मिसाल-ए-अब्र छाई है
मज़ाक़-ए-जुस्तुजू बन कर रग-ए-दिल में समाई है
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
ये नमक-ख़्वारान-ए-मिल्लत जब कहीं पीते हैं चाय
''आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए''