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नज़्म
वो मेरी रूह का मक़्सूद-ओ-फ़ख़्र-ए-मौजूदात
उसी के नूर से रौशन है जल्वा-गाह-ए-सिफ़ात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
कारवान-ए-रफ़्ता को था तेरी यकताई पे नाज़
अस्र-ए-मौजूदा ने भी माना है तेरा इम्तियाज़
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
कोई दस्तक कोई आवाज़ कोई हर्फ़-ए-सबा
कोई तदबीर कि इस लम्हा-ए-मौजूद के मर जाने से पहले पहले
अय्यूब ख़ावर
नज़्म
मुझ को ये वहम था हर शय से मुझे उल्फ़त है
मुझ को ये वहम था मैं ‘आलम-ए-मौजूद का मुस्तक़बिल हूँ
मोहम्मद शामिमुज्जामा
नज़्म
उसी से हो गई हर इशरत-ए-मौजूद सद पारा
ब-जुज़ इक रूह-ए-नालाँ चश्म-ए-हैराँ उम्र-ए-सर-गर्दाँ