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नज़्म
ये ख़ामोशी कहाँ तक लज़्ज़त-ए-फ़रियाद पैदा कर
ज़मीं पर तू हो और तेरी सदा हो आसमानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुझ में कुछ पैदा नहीं देरीना रोज़ी के निशाँ
तू जवाँ है गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर के दरमियाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बन गए अपनी गृहस्ती के जो दुश्मन तुम हो
हो के ग़ैरों पे फ़िदा बीवी से बद-ज़न तुम हो
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
इस में इक बैठी वो मैना कि हो बुलबुल भी फ़िदा
मैं ने पूछा ये तुम्हारा है रहा वो चुपका
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
लर्ज़िश वो सितारों की वो ज़र्रों का तबस्सुम
चश्मों का वो बहना कि फ़िदा जिन पे तरन्नुम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
है जो रौशन बज़्म में क़ौमी तरक़्क़ी का चराग़
दिल फ़िदा हर इक का उस पर सूरत-ए-परवाना है