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नज़्म
जब फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जाँ में फ़ुग़ाँ भूल गई है
हर शब वो सियह बोझ कि दिल बैठ गया है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सड़ चुके इस के अनासिर हट चुका सोज़-ए-हयात
अब तुझे फ़िक्र-ए-इलाज-ए-दर्द-ए-इंसाँ है तो क्या
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल की आँखों से परे मेरी निगाहों से परे
फिर वही फ़िक्र-ए-सफ़र फ़िक्र-ए-तलब फ़िक्र-ए-ज़वाल
सोहन राही
नज़्म
ऐ कि दिल तेरा है फ़िक्र-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम में
ज़हर भी होता है अक्सर ख़ूबसूरत जाम में