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नज़्म
यूँ तो मुझ से हुईं सिर्फ़ आब-ओ-हवा की बातें
अपने टूटे हुए फ़िक़्रों को तो परखा होता
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
सरवत हुसैन
नज़्म
अब तलक भी मिरी फ़िक्रों के तराशीदा ख़ुतूत
जाने क्यूँ तेरे ख़द-ओ-ख़ाल में ढल जाते हैं
शाहिद अख़्तर
नज़्म
ऐसे बे-फ़िक्रों को जिन की तब्अ मौज़ूँ ही न थी
शौक़ था कन्कव्वे-बाज़ी का, बजाए-शाएरी
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
तिरी फ़िक्रों के धारे बह चले गंग-ओ-जमन बन के
तिरे आदर्श ने धरती को ढाँका है गगन बन के
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
बन रही हैं अब ज़माना में नई पगडंडियाँ
जिन से गुज़रेगा जवाँ फ़िक्रों का पहला कारवाँ