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नज़्म
फ़िरदौस-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ है दामान-ए-लखनऊ
आँखों में बस रहे हैं ग़ज़ालान-ए-लखनऊ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुझ से मत पूछ ''मिरे हुस्न में क्या रक्खा है''
आँख से पर्दा-ए-ज़ुल्मात उठा रक्खा है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जल्वा-ए-हुस्न-ए-अज़ल आए तसव्वुर में अगर
गोशा-ए-दिल में मचलते हुए अरमाँ होंगे
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
वहाँ परियाँ मोहब्बत के ख़ुदा के गीत गाती हैं
कनार-ए-आब-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ बाहम सैर करते हैं
नज़ीर मिर्ज़ा बर्लास
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
हल्की हल्की चाँदनी कैफ़ियत-ए-गुल-गश्त-ए-बाग़
वो लब-ए-जू आह हुस्न ओ इश्क़ के दो शब चराग़
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
छाई है क्यूँ फ़सुर्दगी आलम-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ पर
आज वो ''नल'' किधर गए आज ''दमन'' को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं