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नज़्म
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़्मे गाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
'गाँधी' हो कि 'ग़ालिब' हो इंसाफ़ की नज़रों में
हम दोनों के क़ातिल हैं दोनों के पुजारी हैं