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नज़्म
छेड़ती इक वज्द के आलम में साज़-ए-सरमदी
ग़ैज़ के आलम में मुँह से आग बरसाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बला-ए-बे-अमाँ है तौर ही इस के निराले हैं
कि इस ने ग़ैज़ में उजड़े हुए घर फूँक डाले हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हर इक कशीद है सदियों के दर्द ओ हसरत की
हर इक में मोहर-ब-लब ग़ैज़ ओ ग़म की गर्मी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मौज-ए-ख़ूँ जब तक रवाँ रहती है उस का सुर्ख़ रंग
जज़्बा-ए-शौक़-ए-शहादत दर्द, ग़ैज़ ओ ग़म का रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फ़क़त आधे ही रह जाओगे इक टूटे खिलौने से!
मुझे ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब ने जैसे पागल कर दिया था
सत्यपाल आनंद
नज़्म
आकाश 'अर्श'
नज़्म
ग़ैज़ में आऊँ तो पानी को शरारा कर दूँ
मिस्ल-ए-सीमाब समुंदर को दो-पारा कर दूँ