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नज़्म
तिरे दिल की ग़लत-फ़हमी मिरे आँसू न धो पाए
बने हैं आज जो विर्सा हैं तेरी याद के साए
परवाज़ नूरपुरी
नज़्म
गई-गुज़री ग़लत-फ़हमी का ज़िक्र-ए-ख़ैर करते हैं
वहाँ के रहने वालों को गुनह करना नहीं आता
नज़ीर मिर्ज़ा बर्लास
नज़्म
ग़लत-फ़हमी है उन की 'ख़्वाह-मख़ाह' या मेरी ख़ुश-फ़हमी
समझते हैं मुझे सब शाइ'रों में मो'तबर ज़्यादा
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
लाशों की बे-हुरमती की खुली छूट दे दी गई हो
मैं इन की किसी ग़लत फ़हमी को दूर करने की कोशिश नहीं करूँगा