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नज़्म
मुझे दश्त-ए-तख़य्युल का सफ़र करना अगर आता
तवाफ़-ए-काबा करता, ज़िंदगी को सम्त मिल जाती
कौसर मज़हरी
नज़्म
दूर से चल के आया था मैं नंगे पाँव नंगे सर
सर में गर्द ज़बाँ में काटने पाँव में छाले होश थे गुम
ख़ुर्शीदुल इस्लाम
नज़्म
चप्पा-चप्पा घूम कर आने की हसरत है तो है
दोस्तो मिर्रीख़ पर जाने की हसरत है तो है
अताउर्रहमान तारिक़
नज़्म
कभी खेला जो कोई खेल गंदा मुझ को समझाया
कभी चुग़ली किसी की मैं ने खाई तो बुरा माना