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नज़्म
ये ख़ाकी जिस्म भी उस का बहुत ही बेश-क़ीमत था
जिसे हम-जल्वा समझे थे वो पर्दा भी ग़नीमत था
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
चादरें माल-ए-ग़नीमत में जो अब के आईं
सेहन-ए-मस्जिद में वो तक़्सीम हुईं सब के हुज़ूर
शिबली नोमानी
नज़्म
यही ग़नीमत है कि दिल भर आए तो मुँह ही मुँह में कुछ बड़बड़ा लें
आख़िर जब ख़ुदा ने अभी ख़ुदाई न बनाई थी
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
बड़ा बुज़ुर्ग है ये गो क़लील क़ीमत है
मियाँ बुज़ुर्गों का साया बड़ा ग़नीमत है