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नज़्म
मैं गंज-ए-आब-ओ-ताब हूँ मैं बहर-ए-नूर-ओ-नार हूँ
ये चाँदनी की ठंडकें ये धूप की हरारतें
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
क्यूँ न कहिए तुझ को इक सरचश्मा-ए-आब-ए-बक़ा
हैं ये आसार-ए-क़दीमा तेरे गंज-ए-बे-बहा
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
ख़ाक-ए-पाक-ए-हिंद का गंज-ए-गिराँ-माया था तू
अह्ल-ए-दुनिया के लिए पैग़ाम-ए-हक़ लाया था तू
सुदर्शन कुमार वुग्गल
नज़्म
अफ़सोस मुल्क-भर में हो इक चराग़ वो भी
बुझ जाए जलते जलते सोज़-ए-ग़म-ए-निहाँ से
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
हर नफ़स रौ में लिए सोरिश-ए-तुग़्यान-ए-निहाँ
हर नज़र शौक़ का अफ़सान-ए-बे-ताब लिए