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नज़्म
घटा की घन-गरज से क़ल्ब-ए-गीती काँप जाता है
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
क्या हुई बाला-ए-सर वो लुत्फ़-ए-यज़्दाँ की घटा
आसमान-ए-दिल पे वो घनघोर इरफ़ाँ की घटा