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नज़्म
सो मैं कमीं-गाह-ए-आफ़ियत में चला गया था
सो मैं अमाँ-गाह-ए-मस्लहत में चला गया था
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
लाहौर में देखा उसे मदफ़ूँ तह-ए-मर्क़द
गर्द-ए-कफ़-ए-पा जिस की कभी काहकशाँ थी
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
गर्द-ए-मसाफ़त में छुपाने के लिए
बर्क़-पा लम्हों को थामे दौड़ते जाते हैं हम
राजेन्द्र मनचंदा बानी
नज़्म
उफ़ुक़ गर्द-ओ-ग़ुबार-ए-राह बन कर डूब जाते हैं
वो देखो पौ फटी अँधियारे जादों के शिगाफ़ों से
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
उफ़ुक़ गर्द-ओ-ग़ुबार-ए-राह बन कर डूब जाते हैं
वो देखो पो फटी अँधियारे जादों के शिगाफ़ों से
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
हूरें आ कर ख़ुल्द से तौफ़-ए-मज़ार-ए-पाक को
झाड़ती पलकों से हैं गर्द-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक को