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नज़्म
गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त
गर मुझे इस का यक़ीं हो कि तिरे दिल की थकन
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
आरिज़-ए-गर्म पे वो रंग-ए-शफ़क़ की लहरें
वो मिरी शोख़-निगाही का असर आज की रात