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नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
वही करते हैं कोशिश आज उर्दू को मिटाने की
सिखाती है जिन्हें महफ़िल में अंदाज़-ए-बयाँ उर्दू
रहबर जौनपूरी
नज़्म
क्या सराहें वो तिरा फ़न तिरा अंदाज़-ए-बयाँ
जिन को अल्फ़ाज़ के मअ'नी भी नहीं हैं मालूम
सदा अम्बालवी
नज़्म
भला मिर्रीख़ पर जाने का ये अज़्म-ए-जवाँ क्या है
मुझे भी कुछ बताओ उन का अंदाज़-ए-बयाँ क्या है
अंजुम आज़मी
नज़्म
निखरा निखरा नई सज-धज का है अंदाज़-ए-बयाँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ
साहिर होशियारपुरी
नज़्म
मुझे दरकार है फिर मुल्क-ओ-मिल्लत की हुदी-ख़्वानी
'नज़ीर'-ओ-'शिब्ली'-ओ-'हाली' का अंदाज़-ए-बयाँ दे दे
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
कोई अंजुम आसमाँ का और सुबुक परवाज़-ए-शौक़
रहनुमा है क्या तिरा दिल-दादा-ए-अंदाज़-ए-शौक़
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
यहीं देखे थे इश्वा-ए-नाज़ ओ अंदाज़-ए-हया मैं ने
यहीं पहले सुनी थी दिल धड़कने की सदा मैं ने
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
हुस्न भी ग़मज़ा-ओ-अंदाज़-ओ-अदा भूल गया
इश्क़ भी जल्वा-ए-रंगीं की ज़िया भूल गया