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नज़्म
ख़ुदा करे तुम्हारी शाख़ों से एक झोंपड़ी बनाई जाए
बाज़ुओं के घेरे में न आने वाले तुम्हारे
सरवत हुसैन
नज़्म
क्रोध बढ़े नफ़रत घेरे लालच की आदत घेरे
बचपन इन पापों से हट कर अपनी उम्र गुज़ारे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़स्ल-ए-बहार आई मगर हम हैं और ग़म
हर सम्त से हैं घेरे हुए सदमा-ओ-अलम
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
नज़्म
और सुब्ह होने तक सब भूल जाती हूँ
बे-कार सोचें घेरे रहती हैं हमा-वक़्त मुझ को
मर्यम तस्लीम कियानी
नज़्म
घेर लें जैसे उरूस-ए-नौ को हम-सिन लड़कियाँ
यूँ तुझे घेरे हुए हैं नौ-निहालान-ए-चमन