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नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
ये खेप भरे जो जाता है ये खेप मियाँ मत गिन अपनी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू तुर्श-रू ग़म-गीं, परेशाँ-मू
जहाँ-गिरी, जहाँ-बानी फ़क़त तर्रार-ए-आहू
नून मीम राशिद
नज़्म
इक ग़म-गीं लड़की के चेहरे पर चाँद की ज़र्दी छाई है
जो बर्फ़ गिरी थी इस पे लहू के छींटों की रुशनाई है