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नज़्म
कैसे कैसे अक़्ल को दे कर दिलासे जान-ए-जाँ
रूह को तस्कीन दी है दिल को समझाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
परे है चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम से मंज़िल मुसलमाँ की
सितारे जिस की गर्द-ए-राह हों वो कारवाँ तो है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिन के दस्तरख़्वान पर होती थीं सदहा ने'मतें
उन को मिलती है ग़िज़ा-ए-रंज पैहम हाए हाए
सरीर काबिरी
नज़्म
ऐ गुल-ए-रंगीं-क़बा ऐ ग़ाज़ा-ए-रू-ए-बहार
तू है ख़ुद अपने जमाल-ए-हुस्न का आईना-दार
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
हुई है रूह वो अब जज़्ब-ए-रूह-ए-पाक-ए-अज़ीम
मिला जो ज़ात में उस की जुदा नहीं मिलता