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नज़्म
हो कुछ इस तरह गुल-अफ़्शानी-ए-अर्बाब-ए-सुख़न
जिस से पामाली-ए-गुलबाँग-ए-अनादिल हो जाए
सरीर काबिरी
नज़्म
छुप गया ख़ुर्शीद-ए-ताबाँ आई दीवाली की शाम
हर तरफ़ जश्न-ए-चराग़ाँ का है कैसा एहतिमाम
मोहम्मद सिद्दीक़ मुस्लिम
नज़्म
ने मजाल-ए-शिकवा है ने ताक़त-ए-गुफ़्तार है
ज़िंदगानी क्या है इक तोक़-ए-गुलू-अफ़्शार है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जहाँ तक देख पाता हूँ ज़मीं पर ताबिश-ए-ज़र है
फ़ज़ा-ए-नील-गूँ में बर्ग-अफ़्शानी से मंज़र है
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
तुम ही उर्दू के गुलिस्ताँ में ख़ुश-इलहान नहीं
किश्त-ए-बंगाल गुल-अफ़शाँ है तुम्हारा क्या है
अफ़ज़ल हुसैन अफ़ज़ल
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कभी राहत कभी आज़ार-ए-जाँ मालूम होती है
मोहब्बत एक पैहम इम्तिहाँ मालूम होती है