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नज़्म
दिखलाएँ किस मज़े से अब के बहार होली
खेले हैं सब जम्अ' हो क्या गुल-एज़ार होली
लुत्फ़ुन्निसा इम्तियाज़
नज़्म
कभी तुम ख़ला से गुज़रो किसी सीम-तन की ख़ातिर
कभी तुम को दिल में रख कर कोई गुल-अज़ार आए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अब तो मस करती है जब ऐसे एज़ार-ए-गुल से
ऐसी आवाज़ से गूँज उठती है गुलशन की फ़ज़ा
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
कभी रूह-ए-तरब रक़्साँ नज़र आती थी काँटों में
नशात-ए-गुल भी अब आज़ार-ए-जाँ मालूम होती है
राम लाल वर्मा हिंदी
नज़्म
एक भँवरे को ख़िज़ाँ में थी गुल-ए-तर की तलाश
ख़ुद सनम-ख़ाना-ए-आज़र को थी आज़र की तलाश
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुल-ए-अनार सुर्ख़ होंटों से ज़ियादा सुर्ख़ था
पके हुए फलों की ख़ुशबुएँ थीं मुजतमा'