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नज़्म
कितने तो भंग पी पी कपड़े भिगो रहे हैं
बाहें गुलों में डाले झूलों में सो रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
झड़ी बरसात की जब आग तन मन में लगाती हो
गुलों को बुलबुल-ए-नाशाद हाल-ए-दिल सुनाती हो
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
बू-ए-नख़वत से नहीं याँ के गुलों को सरोकार
है बुज़ुर्गों का अदब इन की जवानी का सिंगार