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नज़्म
है डर कैसा तुम्हारे हम-सफ़र जब अहल-ए-फ़न भी हैं
तुम्हारे साथ शा'इर भी हैं और इन में 'चमन' भी हैं
चमन सीतापुरी
नज़्म
सेहन-ए-चमन पर भौउँरों के बादल एक ही पल को छाएँगे
फिर न वो जा कर लौट सकेंगे फिर न वो जा कर आएँगे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
बू-ए-गुल ले गई बैरून-ए-चमन राज़-ए-चमन
क्या क़यामत है कि ख़ुद फूल हैं ग़म्माज़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मेरी तख़्ईल में है एक जहान-ए-बेदार
दस्तरस में मिरी नज़्ज़ारा-ए-गुल-हा-ए-चमन
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
बाग़बाँ जो थे वो ख़ुद थे महव-ए-तख़रीब-ए-चमन
अल-ग़रज़ बिगड़ी हुई थी अंजुमन की अंजुमन
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
दो दिन रहे जो आ के जहाँ में तो खल गए
आख़िर को मिस्ल-ए-ख़ार-ए-चमन से निकल गए
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
नज़्म
देख कर बश्शाश हो जाता है क़ल्ब-ए-पुर-मेहन
फूल गुड़हल का है या आवेज़ा-ए-गोश-ए-चमन