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नज़्म
लाल-क़िले के ज़वाल ओ शहर-ए-देहली की क़सम
मोहसिन-ए-देहली मआल-ए-शहर-ए-देहली की क़सम
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
हिजरत-ए-सुल्तान-ए-देहली का समाँ भी याद है
शेर-दिल 'टीपू' की ख़ूनीं दास्ताँ भी याद है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
यक़ीन-ए-ख़ुफ़्ता गुमान-ए-पुख़्ता के पानियों पर
जहाँ पे अव्वल मोहब्बतों के कँवल खिले थे
सईद अहमद
नज़्म
तिरे यक़ीं ने किया है वो इंक़िलाब-ए-अज़ीम
कि अहद-ए-हाल पे अब है गुमान-ए-मुस्तक़बिल
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
रश्क-ए-सद-ख़ुर्शीद था हर-ज़र्रा-ए-देहली-ए सुना
मारता चश्मक सफ़ा पर था ग़ुबार-ए-लखनऊ
हकीम आग़ा जान ऐश
नज़्म
ज़मानी ज़द में ज़न की इक गुमान-ए-लाज़िमानी है
गुमाँ ये है कि बाक़ी है बक़ा हर आन फ़ानी है