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नज़्म
ब-सद ग़ुरूर ब-सद फ़ख़्र-ओ-नाज़-ए-आज़ादी
मचल के खुल गई ज़ुल्फ़-ए-दराज़-ए-आज़ादी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जामे से बाहर निगाह-ए-नाज़-ए-फ़त्ताहान-ए-हिन्द
हद्द-ए-क़ानूनी के अंदर ऑनरेबलों की क़तार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
तेरे जौर-ओ-सितम-ओ-नाज़-ओ-तलव्वुन के क़तील
काँप कर कहते हैं नैरंगी-ए-क़िस्मत तुझ को
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
गुज़रते दिन हयात-ए-नौ की सुर्ख़ियाँ लिए हुए
तमाम क़ौल और क़सम निगाह-ए-नाज़-ए-यार थी
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
तू जिस घर में रहे ख़ुशियाँ वहीं आबाद हो जाएँ
तू मुल्क-ए-नाज़-ओ-ने'मत की हो शहज़ादी मुबारक हो
मीर अंजुम परवेज़
नज़्म
ज़िंदगी को नागवार इक सानेहा जाने हुए
बज़्म-ए-किबर-ओ-नाज़ में फ़र्ज़ अपना पहचाने हुए