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नज़्म
निगाह को थी मगर मीर-ए-कारवाँ की तलाश
नज़र जो उट्ठी तो देखा कि एक मर्द-ए-फ़क़ीर
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
हाए अब क्या हो गई हिन्दोस्ताँ की सर-ज़मीं
आह ऐ नज़्ज़ारा-आमोज़-ए-निगाह-ए-नुक्ता-बीं