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नज़्म
तेरी नज़र में हैं तमाम मेरे गुज़िश्ता रोज़ ओ शब
मुझ को ख़बर न थी कि है इल्म-ए-नख़ील बे-रुतब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गुज़िश्ता अज़्मतों के तज़्किरे भी रह न जाएँगे
किताबों ही में दफ़्न अफ़्साना-ए-जाह-ओ-हशम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
गुज़िश्ता इशरतों के ख़्वाब आईना दिखाते हैं
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुझ को शिकवा है मिरे भाई कि तुम जाते हुए
ले गए साथ मिरी उम्र-ए-गुज़िश्ता की किताब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गुज़िश्ता हसरतों के दाग़ मेरे दिल से धुल जाएँ
मैं आने वाले ग़म की फ़िक्र से आज़ाद हो जाऊँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आह पत्थर की लकीरें हैं कि यादों के नुक़ूश
कौन लिख सकता है फिर उम्र-ए-गुज़िश्ता की किताब