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नज़्म
हत्ता कि अपने ज़ोहद-ओ-रियाज़त के ज़ोर से
ख़ालिक़ से जा मिला है सो है वो भी आदमी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ये तेरा ज़र्द रुख़ ये ख़ुश्क लब ये वहम ये वहशत
तू अपने सर से ये बादल हटा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
पर्दा-हा-ए-ख़्वाब हो जाते हैं जिस से चाक चाक
मुस्कुरा कर अपनी चादर को हटा देती है ख़ाक